Thursday, October 18, 2018

संघर्ष

कुछ ऐसा संघर्ष भरा जीवन मिला उसको भाई।
प्रयास करे कितने भी पर उसने कभी मंजिल ना पाई।।

प्यास लगी है बहुत और उसके हर तरफ पानी है भाई।
पर कभी खारे समंदर ने कहां किसी की प्यास बुझाई।।

डरे सहमे पंछी ने हिम्मत कर जब अपने पंखों को खोला।
बादल बरसे कुछ इस तरह कि पंछी डर से उड़ना ही भुला।।

थक हार कर जब उसने प्रभु भक्ति से आस लगाई,
खुश हुए जब प्रभु बोले चलो कुछ वर मांगो भाई,
खुश होकर उसने अपना जीवन गुलाब के वृक्ष सा मांगा,
यहाँ भी भाग्य ने कुछ इस तरह अपना खेल दिखाया।
जन्म लिया गुलाब के वृक्ष पर,लेकिन रूप कांटे का पाया।। 

ऐसे ही संघर्ष कुछ लोगो का चलता जाता।
कितनी भी कर ले भक्ति,पर भगवान भी 
                                                                                   उसे समझ ना पाता।।
                            

नीरज त्यागी*
Mobile No. 09582488698

Wednesday, September 6, 2017

Tuesday, July 11, 2017

विश्व व्यापी हिंदी का भारतीय मोड़

हिंदी एक ऐसा जादूगर हैए जो मानवों के हृदय में दिन ब दिन हमला किया जा रहा है। आज तक उस हमले की गति का सिलसिला बढ़ता जा रहा है और मानव भी अपने आप उस करामत की ओर खींचा जा रहा है।इसके पीछे का सबसे प्रमुख कारण हिंदी की अनेकता है। प्रयोगएक्षेत्रए मानव के मनःस्थिति आदि की पहलुओं पर आधारित हिंदी की अनेकतामानव की मनःस्थिति के अनुकूल अनेक रूप धारण करते हुए ज़बान पर चढ़ती है। दुखए प्रेमए प्रसन्नताए हर्षए अकेलापनए मस्तीए दुष्टता आदि मानव की हर किसी भावना से जुड़ी हुई हिंदी की अलग-अलग पहचान हैए जिनके द्वारा श्रोताओं में भी उसी भावना का उत्पादन कर दिया जाता है।
आज तक विश्व के अधिकांश लोगों के द्वारा बोलनेवाली भाषाओं में हिंदी तृतीय स्थान पर खड़ी हैए और द्वितीय स्थान पाने का सिलसिला होता जा रहा है।19वीं शताब्दी में ब्रितानी और फ्रेंच में उपनिवेश में रखे गये भारतीय शर्तबंद मज़दूरों के साथ आरंभ हुई प्रवासी भारतीयों की हिंदी आज ष्प्रवासी हिंदीष् नाम को लेकर विश्व भर घूम रही है। आज उसका बढ़ाव मॉरीशसए फीजीए गुयानाए सूरीनामए ट्रिनिडाड-टुबैगोए बर्माए थाईलैंडए नेपालएमलेशियाएदक्षिण अफ्रीकाए नार्वे आदि लगभग सौ से अधिक देशों तक हुआ हैए बल्कि उसके प्रयोगकर्ताओं की संख्या 2 करोड़ से बढ़कर है। मातृ भाषी भारत वासियों की हिंदी अंतःराष्ट्रीय स्तर पर ष्विश्व भाषाष् का रूप भी धारण कर चुकी है और अन्य विदेशी भाषियों में संपर्क भाषा के रूप में लोकप्रिय हो रही है।
वास्तव में अंतःराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी जिस मोड़ पर ठहरी हैए जिसके पीछे हिन्दी सिनेमा का विराट भूमिका हैए वहाँ से डेढ़ सारे रास्ते खुल चुकी हैंए जिनसे निकली हिंदी रूसए अमेरिकाए कनाडाए इंग्लैंडए जर्मनीए इटलीएबेल्जियमए फ्रांसए रूमानियाए चीनए जापानए स्वीडनए पोलैंडए आस्ट्रेलियाए मैक्सिकोए श्री लंका आदि देशों तक पहुँच चुकी है।
एक ओर विश्व भाषा हिंदी जितनी स्वावलंबन हो रही हैए दूसरी ओर राष्ट्र भाषा हिंदी उससे कई ज़्यादा घट रही है। आज हिंदी विदेशी भाषियों को हिंदी प्राध्यापक बना रही हैएभारत उसी हिंदी को एक ऐसा मोड़ पर ले आया हैए जहाँ से निकलती गलियों पर हिंदी को कम महत्व मिलना रुका नहीं जाता। इतनी परिनिष्ठित हिंदीए जिसके पीछे विराट इतिहास है भारत में दिन.ब.दिन घुल रही हैए जिसका परिणामवशवास्तविक भारतीय पहचान विकृत हो रही हैए क्योंकि हिंदी का उत्तर भारतीय संस्कृति से अटूट रिश्ता हैए जिसे मानव के अपनापन तथा एकता का एक स्रोत कहना तर्कसंगत है।
हिंदी का इतिहास भारत से आये आर्यों की भाषा वैदिकी संस्कृत तक दौड़ता है। (1500 ई0 पूर्व  के आसपासद्) तब से हिंदी की पैदाइश होने तक भारत में कालक्रमानुसार जिन भाषाओं का प्रयोग होता रहा उन सभी का समावेश हिंदी के सूत्रपात से है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक ओर अंग्रेज़ भारतीय संस्कृति का ध्वंस कर रहा थाए तब भी हिंदी में उनसे ठोकरे खाते हुए राष्ट्र भाषा संग्राम में भी मुसलमानों की भाषा उर्दू से टकराने की शक्ति इसलिए थीए क्योंकि हिंदी एक भाषा ही नहीं ठहरीए बल्कि भारतियों की संपर्क करने की संस्कृति भी रही। आज हिंदी स्वतंत्र भारत की राष्ट्र भाषा है। उत्तर भारत के दस राज्यों की राज्य भाषा हैए पूरे भारत की जनता की संपर्क भाषा है।
सन् 1947 में मिली स्वतंत्रता के साथ अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना पड़ाए अपितु उनहोंने अपने जिन चीजों को भारत में छोड़ आया हैए उनके द्वारा तभी से भारतीयता को गोरा बना दिया जा रहा है। उस शिकारी की ओर हिन्दी का जुज़रना दिन बी दिन तेज़ हो रहा है। आज वह दशा यहाँ तक पहुँच गयी है कि अपनी मातृ भाषा हिंदी से संपर्क करना लोग शर्म कि बात समझते हैं।
समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं की हिंदी में श्ब्दोच्चारण तक बदलाव आ गया है। शब्दों में चंद्रबिंदु चला ही गया है, उसकी कमी बिंदी ने पूरा कर दी है।’ ज ‘ का भी वही स्थिति जिसकी कमी ‘ज ‘ पूरा कर रहा है। इसका फलस्वरूप पाँच का पांचए गाँव का गांव आँगन का आंगन हो गया है तोए सज़ा का सजाए ज़रूर का जरूर और मज़ा का मजा। दूसरी ओर समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं की हिंदी क्रमशः अंग्रेज़ीकरण हो रही है। हर विज्ञापन केए हर आलेख केए हर कविता के हर अनुच्छेद में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग होना आम कारण बन चुका है। कभी-कभी हिंदी विज्ञापनों में पूरे अंग्रेज़ी वाक्य तक छपता है।
दूरदर्शन तथा रेडियो के स्तर परप्रस्तुतकर्ताओं तथा आख्यापकों के द्वारा अपने प्रस्तुतीकरण में जिस भाषा का प्रयोग किया जा रहा हैए जो इतना अशुद्ध है कि किसी शुद्ध भाषा की कल्पना करना न मुमकिन हो गया है। इनकी हिंदी का व्याकरण बेडौल बन गया है। लिंग का एहसास चला ही गया है। वाक्यों की शुरूआत हिंदी मेंए अपितु उसका अंत अंग्रेज़ी मेंए बल्कि उर्दू का भी समावेश। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशियों के हृदय तक हिंदी पहुँचने का वाहक बोलिउड की दुनिया हैए लेकिन आज वह दुनिया आधे से ज़्यादा अंग्रेज़ीकारण बन चुकी है। उनके संवादए गीत ही नहीं चलचित्रों के नाम भी अंग्रेज़ी में निकलने लगे हैं। सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि हिंदी चलचित्रों के संवाद का लिपिबद्धीकरण अंग्रेज़ी लिपियों से होता है।बोलिउड की दुनियाए जिसका सूत्रपात उत्तर भारतीय संस्कृति पर निर्भर थी तथा उसकी हिंदी माध्यम से अलग पहचान थीए आज उसी दुनिया में गुज़रनेवाला मानव.संसाधन की हिंदी टूटी.फ़ूटी हो गयी हैए आधी अदूरी रह गयी है।
भारत की गली गली पर हिंदी के साथ अंग्रेज़ी भी गूँजने लग गयी है। आम जनता की मनःस्थिति यहाँ तक बदल गयी है कि वे हिंदी के साथ कोई कमी का अनुभव करने लगे हैं। अंग्रेज़ी दृष्टिवाद की जड़ों ने हिंदी को भी घेर लिया है। अंग्रेज़ी पैंट, कमीज़ तथा सङ्ग्लज़ पहनने के बाद हिंदी में बोलना शर्म की बात समझी जाती है।भारत की नयी पीढ़ी ढेड़ सारे हिंदी शब्द, उनके मानक उच्चारण नहीं जानतेए जो उनकी गलती नही , दृष्टिवाद का प्रभाव है, यहाँ तक का वातावरण उसकी पुरानी पीढ़ी के द्वारा निर्माण किया गया है।
हिंदी व्याकरण पर कार्यरत फ्रांस के डॉण् निकोल बलबीर के द्वारा फ्रेंच भाषियों के लिए श्हिंदी मैनुअलश् तैयार किया गया हैए तो भारत वासियों के द्वारा अपने बच्चों की पढ़ाई का माध्यम अंग्रेज़ी बना दी गयी है। अमेरिका में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी समझने और सीखनेवालों की संख्या लाखों में हैए तो भारत में अंग्रेज़ी को मातृ भाषा का पद मिल रहा है। जापान के प्रोण् क्यूया दोई के द्वारा ष्हिंदी.जापानी कोशष् तथा ष्जापानी.हिंदी कोशष् की रचना की गयी हैए तो भारत के हिंदी कोश ग्रंथ पुस्तकालयों में छिपे जा रहे है। श्री लंका तथा चीन में हिंदी की प्राध्यापक प्रजा दिन.ब.दिन बढ़ती जा रही है और स्कूली शिक्षा के बाद हिंदी की पंचवर्षीय स्नातक पढ़ाई की व्यवस्था की गयी है तथा बी ए .एम ए और पी एच डी का भी व्यवस्था की गयी है।
राष्ट्र भाषा आंदोलन में14 सितंबर 1949 को संविधान सभा के द्वारा हिंदी राष्ट्र भाषा के रूप में घोषित की गयीए जो हिंदी की बहुत बड़ी जीत रही। उसी जीत के मनाने तथा भारत के अहिंदी क्षेत्रों में हिंदी का प्रचार.प्रसार करने हेतु सन् 1953 सितंबर 14 से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के द्वारा पूरे भारत में हिंदी दिवस मनाने का आयोयन किया गया। आज यह तिथि भारतियों को हिंदी की याद दिलाने का साधन मात्र बनता जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मानाते हुए दूसरे देशों के करोड़ों जनता हिंदी को अपना रही हैए भारत वासी उसी हिंदी से खुदका क्या रिश्ता है यह बताना ‘गवारापन’ समझने लगे हैं।
अंग्रेज़ी संस्कृति मानो मोर हैए जो अपने पंकों से भारतियों को फ़िदा करवाते हुए निज पूँजीवाद का शुक्राणु भारत में जगह-जगह छोड़ चला गया। उसकी सफलता यहाँ तक पहुँच गयी है कि जब अंग्रेज़ भारत को छोड़कर 70 वर्ष हो रहा हैए तब अंग्रेज़ी संस्कृति का बच्चा किशोर बन खड़ा रहा है। इस माहौल में अंग्रेज़ी हर किसीको खास बना ही देती हैए किंतु हिंदी उन्हें आम बना देती है।
श्री लंका के केलणिय विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक उपुल रंजित हेवावितानगमागे का कहना हैए श्भारत से ज़्यादा श्री लंका में हिंदी सुरक्षित हैश्। लिखने तथा बोलने के लिए प्रामाणिक व्याकरण से युक्तए संस्कृतए पालिए अपभ्रंश जैसी गहरी भाषाओं से होते हुए उपजीए विभिन्न शैलियोंए प्रयोगों के विचार.विमर्श से बनी मानक हिंदीए जो स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज़ों के विरुद्ध उठा भारतीय वीरों का नुकीला अस्त्र रहाए आज उन्हीं के द्वारा उसी अंग्रेज़ी को अस्त्र बनाकर जान बूझकर अपना महान शिष्टाचार का ध्वंस किया जा रहा है। (इन्टरनेट फोटो )

डी डी धनंजय वितानगे ( श्री लंका )

Sunday, November 13, 2016

बिना बाल शिक्षा के देश के उज्जवल भविष्य की कल्पना करना निरर्थक (बाल दिवस 14 नवंबर 2016 पर विशेष)

भारत में प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू की जन्म जयंती को बाल दिवस के रूप में 14 नवंबर को  मनाया जाता है। क्योंकि स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू जी को बच्चों से बहुत प्यार था और बच्चेउन्हें चाचा नेहरू पुकारते थे। स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू जी का जन्मदिवस बाल दिवस के रूप में बच्चों को समर्पित भारत का एक राष्ट्रीय त्योहार है। दरअसल बाल दिवस बच्चों के लिए महत्वपूर्ण दिन होताहै। बच्चों को स्कूल में हर साल बाल दिवस का आने का इंतजार रहता है। क्योंकि इस दिन स्कूलों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जिसमें बच्चे  बढ़चढ़कर भागीदारी करते हैं। और अपनी प्रतिभादिखाते हैं। इस दिन स्कूली बच्चों के चेहरे पर खुशी देखने लायक होती है। इस दिन बच्चे स्कूलों में सज-धज कर जाते हैं। और  अपने चाचा जवाहर लाल नेहरू को प्यार से याद करते हैं। लेकिन दुनियाभर मेंबहुत सारे ऐसे भी बच्चे हैं। जिन्हें बाल दिवस का मतलब ही नहीं पता। उनके लिए हर दिन मुश्किलों से भरा होता है। क्योंकि उनकी या उनके परिवार की ऐसी स्थिति नहीं होती है। जिससे कि वे स्कूल जासकें या बाल दिवस पर होनें वाले कार्यक्रमों का हिस्सा बन सकें।
बच्चे देश का का आने वाला भविष्य हैं। इसलिए हमें बच्चों की शिक्षा में अमीर-गरीब या लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। बच्चों को बाल श्रमिक बनने से रोकना चाहिए। जो उम्र बच्चों के खेलनेऔर पढ़ने की होती है उसमें आज भी पूरे विश्व में  बच्चे मजदूरी करते हैं। भारत देश के बारे में कहा जाए तो यहाँ बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है। भारत में बाल मजदूरी की समस्या सदियों से चली रही है। कहने को भारत देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। फिर भी बच्चों से बाल मजदूरी कराई जाती है। जो दिन बच्चों के पढ़नेखेलने और कूदने के होते हैंउन्हें बाल मजदूर बनना पड़ताहै। इससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। कहने को सरकारें बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बडे-बडे वादे और घोषणाएं करती हैंफिर भी होता सिर्फ ढाक के वही तीन पात है। इतनीजागरूकता के बाद भी भारत देश में बाल मजदूरी का खात्मा दूर-दूर तक नहीं दिखता है। इसके उल्ट बाल मजदूरी दिन  दिन बढती जा रही है मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकारहो रहे हैं। जो गरीब बच्चियां होती हैं उनको पढने भेजने की जगह घर में ही बाल श्रम कराया जाता है। छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम हेतु मजबूर हैं। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिकशारीरिकआत्मिकबौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैंवो मानसिक रूप से अस्वस्थ्य रहते हैं और बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास मेंबाधक होती है। बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती है। जो की सविधान के विरुध्द है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है।
बाल-श्रम की समस्या भारत में ही नहीं दुनिया कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है। जिसका समाधान खोजना जरूरी है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारितहुआ। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसारखतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है। भारतीय संविधान केमौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुध्द अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। और संविधान के अनुच्छेद24 के अनुसार 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा और  ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जायेगा। औरफैक्टरी कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किये जा सकते हैंजब उनके पास किसी अधिकृतचिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गयी है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिरभी इतने कडै कानून होने के बाद भी बच्चों से  होटलोंकारखानोंदुकानों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जाता हैं। और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता है। जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूपसे प्रभावित होता है।
आज विश्व में जितने बाल श्रमिक हैंउनमें सबसे ज्यादा भारत देश में हैं। एक अनुमान के अनुसार विश्व के बाल श्रमिकों का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा भारत में है। और एक अनुमान के अनुसार भारत के50 प्रतिशत बच्छे अपने बचपन के अधिकारों से वंचित हैं।  उनके पास शिक्षा की ज्योति पहुँच पा रही है और  ही उचित पोषण। हालांकि फैक्ट्री अधिनियमबाल अधिनियमबाल श्रम निरोधक अधिनियमआदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं। किन्तु इसके विपरीत आज की स्थिति बिलकुल अलग है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2 करोड़ बाल मजदूर हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार तोभारतीय सरकारी आंकडों से लगभग ढाई गुना ज्यादा 5 करोड़ बच्चे बाल मजदूर हैं। असल में कहा जाए तो बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम गरीबी के कारण करते हैं। गरीबी ही बच्चे को बालश्रमिक बनने को मजबूर करती है। इसके अलावा भी बढती जनसँख्यासस्ती मजदूरीशिक्षा का अभाव और मौजूदा कानूनों का सही तरीके से क्रियान्वित  हो पाना जैसे कारण बाल श्रम के लिए जिम्मेदारहैं।          
वर्तमान में भारत देश में कई जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण माँ-बाप ही थोड़े पैसों के लिए अपने बच्चों को ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैंजो अपनी सुविधानुसार उनको होटलोंकोठियों तथा अन्यकारखानों आदि में काम पर लगा देते हैं। और उन्हीं होटलोंकोठियों और कारखानों के मालिक बच्चों को थोड़ा बहुत खाना देकर मनमाना काम कराते हैं। और घंटों बच्चों की क्षमता के विपरीत या उससे भीअधिक काम करानाभर पेट भोजन  देना और मन के अनुसार कार्य  होने पर पिटाई यही बाल मजदूरों का जीवन बन जाता है। इसके अलावा भी काम देने वाला नियोक्ता बच्चों को पटाखे बनानाकालीन बुननावेल्डिंग करनाताले बनानापीतल उद्योग में काम करनाकांच उद्योगहीरा उद्योगमाचिसबीड़ी बनानाकोयले की खानों मेंपत्थर खदानों मेंसीमेंट उद्योगदवा उद्योग आदि सभीखतरनाक काम अपनी मर्जी के अनुसार कराते हैं। कई बार श्रम करते-करते बच्चों को यौन शोषण का शिकार भी होना पड़ता है। और खतरनाक उद्योगों में काम करने से कैंसर और टीबी आदि जैसी गंभीरबीमारियां का सामना करना पडता है। एक तरह से बाल श्रमिक का जीवन जीते जी नरक बन जाता है।
आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा। साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगनी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनकेअधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए। जिससे बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे। और शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।गरीबी दूर करने वाले सभी व्यवहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपनेअधिकारों से वंचित हैंउनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरुरत है। और देष केकिसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखेतो देष के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे। और इस दिशा में उचित कार्यवाही करें साथ ही साथ उनके अधिकार दिलानेके प्रयास करें। क्योंकि बच्चे ही भारत के भविष्य हैं। क्योंकि जब तक बच्चों को उनके अधिकारों और शिक्षा से वंचित रखा जायेगा। तब तक देश के उज्जवल भविष्य की कल्पना करना निरर्थक है। चाचानेहरू के सपनों का भारत तभी बन सकता है जब भारत के प्रत्येक बच्चे तक शिक्षा की ज्योति पहुंचे। जब तक भारत देश और पूरे विश्व से बाल मजदूरी खत्म नहीं होती तब तक बाल दिवस मनाना सार्थकनहीं होगा।
लेखक
ब्रह्मानंद राजपूतदहतोराशास्त्रीपुरमसिकंदराआगरा 
(Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra
on twitter @33908rajput
Mob- 08864840607, WhatsApp -  8864840607

Wednesday, July 20, 2016

पहले प्यार वाला " पुल "

हिरणी सी कुलाचे भरती ,बड़ी बड़ी आँखों वाली उस लड़की का आना जैसे   बसन्त की बयार थी या यू कहे फिजाओं में रौनक जैसे आगयी थी।और वो ?वो पहली दफा में ही उस पर मर मिटा था ।उसकी मासूमियत,भोलापन और   अल्हण जवानी और बिना साँस लिए बोलने की अदा।उसकी पहली मुलाकात और बातचीत कुछ यू शुरू हुए।वो अपनी छोटी बहन को ढूढ़ने उसके (लड़के) के घर आयी थी। लड़के की बहन और उसकी बहन एक ही कक्षा और एक ही स्कूल में पढ़ती थी ।और लड़के ने बताया के उसका नया क्वार्टर लिया गया है वही गयी होगी ।सब लोग वही गए है चलो वही पंहुचा देता हूँ।"तुम क्या करती हो?""पढ़ती हूँ " कहाँ?" किस क्लास में हो" "स्कूल नहीं कॉलेज में हूँ बीए सेकंड बीए सेकंड इयर में "और उसने कॉलेज का नाम बता दिया।"और आप क्या करते है?"मैं बीए फाइनल ईयर में""अरे वाह" वह खनकती सी हँसी हंस दी।और एक ही पल में एक असाधारण घटना घट गयी।उस 20 मिनट के रस्ते में वो एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए और जब वो विदा हुयी तो लड़के का दिल अपना न रहा उसे जादूगरनी ले उड़ी थी।उस दिन वो एक साधारण सा पुल दो दिलों को जोड़ने का माध्यम बन गया।हा वो पुल तो बस पहले उसके लिए एक  साधारण सी थी जो केवल कॉलोनी और गांव जो जोड़ती थी मगर अब वो जादू की पुल हो गयी क्योंकि जादूगरनी पुल के उस पार की थी।लोहे की पुल पुरानी थी।

  1. उसकी मासूमियत,भोलापन और   अल्हण जवानी और बिना साँस लिए बोलने की अदा
  2. उस दिन वो एक साधारण सा पुल दो दिलों को जोड़ने का माध्यम बन गया।
  3. जादू की पुल हो गयी क्योंकि जादूगरनी पुल के उस पार की थी|
  4. इनलोगों का प्यार भी आँधी तूफान से गुजर रहा था|
  5. प्यार कभी टूटते टूटते बचता या कभी टिस भी होती उसी होल के जैसा।
  6. लड़की चहक उठी।उधर पूल की भी मरम्मत शुरू हो गयी ।आखिर क्या ठिकाना कब ढह जाये वक्त रहते मरम्मत हो जायेगी तो जिंदगी भी बच जायेगी।
मगर मजबूत ।धीरे धीरे उसका जादू बढ़ता गया।अक्सर उनको मिलाने में दोनों के छोटी बहनों को खूब रोल होता।माध्यम इतना अच्छा के दोनों एक दूसरे को देख चैन भी पा ले लेते और कही कोई शक की गुंजाइश भी न रहती। मगर कहते है के इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते।कॉलोनी का लड़का और पुल पार गांव की लड़की की ,इश्क की बात दबी दबी जबां से कहने लगे।इधर कभी कभी लड़की एकांत के क्षणों में डबडबायी आँखों से पूछती "तुम साथ तो नहीं छोड़ोगे?"और वो उसे कस कर अपनी बाहों में समेट लेता"पागल हो?हाथ पकड़ा है साथ चलने के लिए "और वो आश्वाशन पाकर उसके बाहों में दुबक जाती।दिन बीतते रहे और महीने साथ में बीत गए साल भी।दोनों छुप छुप कर मिलते मिलते थोडा खुल कर मिलने लगे। लड़की के घर वाले जान गए थे उन्हें एतराज नहीं था पीछे -2 सयानी बेटियां और पड़ी थी।लड़का बुरा न था अपने कुल का था ।सुन्दर था ।भविष्य था।वो आश्वस्त थे।मगर लड़के को घर पर बताना था बाकि था बस अड़ंगा ये था दो बड़ी बहने थी जिनकी अभी शादी करनी थी ।फिर पहले कैसे वो सोचे?खैर दोनों में झगड़े भी खूब होते।प्यार था तो तकरार भी।
इधर पुल भी बहुत पुराना होने के कारण कई जगह से टूट रहा था।जगह जगह होल नजर आने लगे थे पैर फसने का भी डर बना रहता मगर फिर भी पुल मजबूती से टिका रहा कितने गाड़िया या लोग उसके सीने को रौंदते चलते मगर जर्जर होने के बावजूद उसमे अभी गजब की ताकत थी।इधर इनलोगों का प्यार भी आँधी तूफान से गुजर रहा था।लोगों की कानाफूसी अब बन्द होकर सीधे सीधे व्यंग्य पर आगयी थी।और इनमें भी कभी   किसी की बात को लेकर या खुद की बातों को लेकर तकरार हो जाता।पुल सी जर्जर अवस्था में इनका भी प्यार कभी टूटते टूटते बचता या कभी टिस भी होती उसी होल के जैसा।मगर साथ न छूटा।बीतते बीतते 5साल गुजर गए ।इस प्यार को रिश्ते को कोई नाम हासिल नहीं हुआ।अब लड़की उकता गयी।घर के ताने के पीठ पिछे 3लड़किया और बैठी है कब ब्याहेगा ये लड़का?समाज के ताने अलग और ये लड़का कुछ करता क्यों नहीं?कब लेजायेगा मुझे?आखिर एक दिन बारिश की तरह बरस पड़ी।खूब रोई और कहा"अब तुम साफ साफ बताओ क्या करोगे?फिर झगड़ा शुरू हो गया।लड़का गुस्से में बोला "जाओ कर लो कही।"वो तड़प गयी ।क्या इतने साल की तपस्या इसी दिन के लिए थी?उसके मन में तो वो बस चूका है ।कैसे निकाले दिल से?"इधर पुल भी अब डगमगा रहा था।अब वो भी इतना जर्जर हो चूका था के शायद ही अब वो टिका रह पाता।लोग सम्भल के आते जाते।मगर भय बना रहता।इधर कुछ दिन दिन तनाव में गुजारे फिर लड़की रोते रोते शांत हो गयी।फिर उसी प्यार के खिलखिलाहट के साथ उसे कॉल की।लड़का फिर दीवानो के जैसा उससे बात करने लगा।उसकी इसी अदा का तो वो कायल था।न उसके दिल में नाराजगी ज्यादा दिन ठहरती न ही मुँह फूलना न दुखी रह पाती।हमेशा फूल सी खिली रहती।आखिर लड़के ने सच माना।हा अब बहुत हुआ चलो अब रिश्ते को नाम दे।लड़की चहक उठी।उधर पूल की भी मरम्मत शुरू हो गयी ।आखिर क्या ठिकाना कब ढह जाये वक्त रहते मरम्मत हो जायेगी तो जिंदगी भी बच जायेगी।सबको लगा ये इश्क में क्या नयी बात हुयी।न कोई दुश्मन था न कोई एतराज।वो तो लड़का ही देर.....मगर एक सच्चाई को किसी ने महसूस नहीं  किया।जहाँ आज के रिश्ते परिपक्व होकर भी शक की आंधी में तिनके की तरह बिखर रहे थे।प्यार के बरसात बिना सुख रहे थे ,वही एक नादानी से शुरू हुआ प्यार 6वर्ष तक मजबूती से टिका रहा।इन वर्षो में न जाने कितने लड़के के लिए रिश्ते आये ,अनबन ,तकरार और बचपना भी आया मगर न टुटा न छूटा तो वो था उनका सच्चा प्यार ।लोगों ने इसे साधारण लिया मगर आज के जमाने में एक के लिए इतनी ईमानदारी,सच्चाई ,सच्चा प्यार किसी को नजर न आया।आता भी नजर कैसे?आज तो झूठ और फरेब ऐसे छा गए है के लोगो को यही नजर आते है।इधर लड़के के घर शहनाई बज रही थी।उधर दो दिलों को जोड़ने वाली पूल भी चमचमाती नई बनी हुयी इतरा रही थी।क्योंकि जर्जर होने के बावजूद भी वो खुद को गिरने नहीं दी और आज मजबूती के साथ खड़ी थी । बिल्कुल उस सच्चे प्यार की तरह ...

बंदना चौवे
बलिया